Madhu Arora

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अनोखी किस्मत

भाग 2
अनोखी किस्मत
अभी तक आपने  पढ़ा, फौजी जसपाल मोहनलाल के घर आकर रूकता है ।और राधिका की मामी नमिता अपनी चचेरी बहन की लड़की की शादी जसपाल से कराना चाहती है। 
राधिका के लिए कुछ नया नहीं रोज का काम सुबह से शाम तक और मामी की डांट बस यही बचा था ,उसके जीवन में सुख के दिन तो जैसे कभी देखे ही नहीं थे। बेचारी ने यही सोचते-सोचते कब उसकी आंख लग गई उसे पता ही नहीं चला शाम होने को आई थी, सर्दियों के दिन थे दिन भी जल्दी ढलता है सर्दियों मे नमिता को शाम की चाय की तलब उठने लगी उसने राधिका को पुकारा।
"शाम की चाय नसीब होगी या नहीं महारानी कब तक ऐसे ही सोती रहेगी अब तो सूर्यनारायण विदा हो गए लाज शर्म है कि नहीं "
मामी की आवाज सुनकर राधिका झट से उठी, रजाई से बाहर आने का उसका मन तो नहीं था पर फिर भी उसने जल्दी से उठ कर आंगन में आकर नमिता 
 से कहा अभी बनाती हूँ मामी क्या है ना वह जरा आंख लग गई थी और यह सुन नमिता कहने लगी चाय के साथ कुछ नाश्ता भी बना लेना "मैंने हरे मटर छील कर रखे हैं जरा तल  लेना"
 
राधिका कहने लगी ठीक है मामी और इतना कहकर वह रसोई में चलीं गईं।

 जसपाल सोचता रहता है इतनी भली लड़की
 के प्रति  नमिता चाची का जो व्यवहार है ।वह बहुत ही दुख दायक है ।
 इतना काम करने के बाद भी इतना काम करने के बाद भी
 उसकी इस घर में यह इज्जत है। शाम की चाय के बाद नमिता पड़ोस में किसी से मिलने चली गई ।
 
राधिका रसोई में रात के खाने की तैयारी कर रही थी तभी  जसपाल रसोई घर में पानी पीने के बहाने आ पहुंचा ,रसोई में अचानक से जसपाल को देखकर राधिका थोड़ा घबरा गई आप घबराओ नहीं मुझे तो बस पानी पीने के लिए चाहिए था अगर आपको कोई परेशानी ना हो तो नहीं तो मैं चला जाता हूं 

 राधिका बोली ऐसी कोई बात नहीं है "आप अचानक से आ गए इसलिए मैं जरा चौक गई अभी पानी देती हूं" राधिका ने लोटे में रखा पानी गिलास में डाल कर दे दिया।
 
  क्या मैं थोड़ी देर आपसे बात कर सकता हूं अगर आपको कोई एतराज नहीं हो तो तो राधिका कहने लगी जी कहिए क्या कहना चाहते हो ?
  
   "आपसे एक बात पूछूं" जसपाल ने सवाल किया?


   "  नमिता चाची आपके साथ ऐसा व्यवहार करती हैं आप कैसे इतना सब कुछ सह लेती हो मुझे तो उनका बरताव बहुत बुरा लगता है।"
  "
    इस पर राधिका गुस्से में बोली" ऐसी कोई बात नहीं है वह मेरी मामी है और मेरी मां के समान है आपको उन्हें कुछ भी कहने की कोई जरूरत नहीं है।"
    
     और इसी बीच नमिता घर में दाखिल हुई दरवाजा भी पहले से खुला हुआ था।
     
।उसने जसपाल और राधिका को रसोई घर में आपस में बातें करते हुए देख लिया था। इतनी और खरी खोटी सुनाई राधिका को नमिता बोली।

कि" मेरे सामने तो बहुत सती सावित्री बनने का नाटक करती है और पीठ पीछे यह गुल खिलाए जा रहे हैं यही दिन देखना बाकी रह गया था।"

 उसने राधिका को बड़ी खरी-खोटी सुनाई दी जसपाल बोला" चाची आप गलत समझ रहे हैं मैं ही रसोई हूं पानी पीने आया था"।
 
  लेकिन नमिता तो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी उसे तो बस अपने आप के देखे पर ही भरोसा था।
  
 तब तक मोहनलाल जी भी आ गए लेकिन नमिता तो जैसे आज चुप रहने का नाम ही नहीं ले रही थी उसे लग रहा था इस लड़के को तो उसने अपनी चचेरी बहन के लिए पसंद किया था अगर ऐसा नहीं हो सका तो मायके वालों को क्या जवाब देगी राधिका ने तब तक खाना तैयारकर लिया था वह बोली मामी पहले सब लोग खा लो और सुना है बाद में मुझे सुना लेना पराए घर का लड़का हमारे घर आकर रुका है भाग्यवान जरा उसकी तो कुछ इज्जत कर  लो।
  लेकिन नमिता तो कहांँ  किसी की सुनने वाली थी।
  
   अब यह जसपालसे देखा नहीं गया तो वे अपना सामान उठाकर जाने लगा मोहनलाल ने उसे बहुत रोकने की कोशिश की बेटा ऐसे रूठ कर मत जाओ, "खाना बन चुका है  दो निवाले खाकर चले जाना वहां दोस्त के सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी।" जसपाल ने दोनों हाथ जोड़कर मोहनलाल से माफी मांगी।
     नमिता और मोहनलाल के चरण छूकर और एक झलक राधिका की ओर देखकर जसपाल उसी समय उस घर से निकल गया।
     मोहनलाल ने नमिता से कहा नमिता तुमने अच्छा नहीं किया बच्चे का बहुत दिल दुखाया है तुमने "बिना सोचे समझे कुछ भी मत बोला करो "।

     तो नमिता हाथ नचाते "दुनिया जहान का खुश रखने का ठेका मैंने ही तो ले रखा है।
     
      उस रात को किसी ने भी खाना नहीं खाया ,उधर बेचारी राधिका का रो-रोकर बेहाल कर लिया था। अपनी किस्मत को कोस रही थी आखिर वह पैदा ही क्यों आज उसकी वजह से एक ऐसे इंसान की इतनी बेज्जती हो गई। जिसकी कोई गलती नहीं थी।
      
      उसको तो जीने का हक नहीं है और यही सोचते सोचते पता नहीं राधिका की आंख लग गई।
      
       दूसरे दिन सब वैसे ही अन्य दिनों की तरह सब सामान्य चल रहा था तभी सुबह-सुबह दरवाजे पर दस्तक हुई। मोहनलाल जी ने दरवाजा खोला और दरवाजा खोलते ही देखा कि उनके मित्र हरपाल खड़े हैं उनसे तुरंत हाथ जोड़कर माफी मांगी ।और कल रात को जो उनके बेटे के साथ  नमिता ने बर्ताव किया था उसके लिए हाथ जोड़कर कहने लगे कि मैं बहुत शर्मिंदा हूँ । 
       
       हरपाल मुस्कुरा कर बोले कोई बात नहीं मित्र मुझे जसपाल ने सब बता दिया है रिश्ते की बात करने आया हूं मैं चाहता हूं  राधिका बिटिया और जसपाल की शादी हो जाए।
       
मोहनलाल मुस्कुरा कर बोले अरे यह तो तुमने बहुत अच्छी बात कही है आपने हमारी राधिका को अपने घर के काबिल समझा और जसपाल हमारी राधिका से विवाह करने के लिए तैयार है एक अनाथ लड़की को एक अच्छा ससुराल मिल जाए और मुझे क्या चाहिए ।

नमिता भी बाहर से आ गई और शादी चाहे जो करो मैं इसकी शादी में एक फूटी कौड़ी खर्च करने वाले नहीं।।


यह आप कैसी बातें कह रही हो मोहनलाल बोले ।

हरपाल बोला। "भाभी जी राधिका भी तो आपकी बेटी के समान है ऐसी बेटी बड़े भाग्य से मिलती है लक्ष्मी का रूप ऐसी बातें ना करें उसके बारे में "।

मोहनलाल जी नमिता को समझाते हुए बोले !"भाग्यवान कुछ तो भगवान से डर ऊपर जाकर क्या मुंह दिखाएगी पाप पुण्य भी तो कुछ होता है ।तू तो अपने अहम में लगता है सब कुछ भूल गई है"।

नमिता  कहने लगी रहने दो रहने दो "यह पाप पुण्य का अंतर मुझको मत समझाओ एक बार जो कह दिया सो कह दिया "
और नमिता के आगे एक भी नहीं चल सकी मोहनलाल और हरपाल ने आपस में कुछ सलाह मशवरा किया कि यह शादी तो होगी लेकिन अभी शादी मंदिर में होगी।

मोहनलाल ने राधिका से पूछा !

राधिका  शादी के लिए तैयार नहीं थी वह मामी का दिल दुखा कर इस प्रकार विवाह नहीं करना चाहती थी । हाथ जोड़कर मोहनलाल जी ने हरपाल से विदा ली । क्या राधिका और जसपाल की शादी हो पाएगी जानने के लिए जुड़े रहिएगा और मुझे प्रोत्साहित करते रहिएगा बताइएगा आपको कहानी कैसी लगी।

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2 Comments

Natasha

14-May-2023 07:35 AM

Bhut khoob

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Gunjan Kamal

25-Apr-2023 07:04 AM

बेहतरीन भाग 👌👌

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